पूछे की कितना शैतान है तू
मैं बोलूं की नहीं हूँ ज़रा भी
देखो ये मेरी है हाज़िर जवाबी
सारे हम बैठे यहाँ पे आराम से
उठेंगे हम भी सुबह को शवगृह
बने धनवान फिर जब लालकारते
खोला पेपर मैंने 10 साल में
पढ़ा खाली मैंने (मौत मौत मौत मौत!)
जब जान है दाम तो भरेगी कैसे?
इल्ज़ाम निज़ाम पे उठेगी कैसे?
चमचमाती नियत में भी दाग है
मेरी आँखें खुली कर ली 4 धाम वाली यात्रा
ज़िंदगी पूछे मुझसे पूरा आंकड़ा
मैं बोलूं घूमूंगा जब तक ये चक्रा
और पहले ही दिया नाम में राज
जलेगा, उठेगा, फैलेंगे, राख!
जलेगा, उठेगा, फैलेंगे, राख!