सावन की रिम झिम फुआरों को
बादल सा छाया रहूँगा तुझपे
ये सूरज की तीरों सी किरने भी न चुभने पाएं
खिलता है देखो ना हर गुलसिता
पूछे नज़र मुझसे तू है कहाँ
रोशन है तुझसे मेरा ये जहाँ
तेरा ही ज़िक्र है तेरी ही फ़िक्र है
उल्फत की जो न कही गयी तू कहानी है
दिल बोले उम्र भर जीवन भर पड़ते ही राहों
उन पे लूटि छह न ये जान मेरी
फूलों की नज़र न लगे आँखों में आजा छुपा लूं मेरी
मेरा क्या सभ कुछ अब तो है तेरा
कह दे ज़रा हाँ तो जान तुझे दे दूँ