एक दिन ऐसा हुआ जो की होना था
मर्ज़ी मेरी नहीं थी, ना ही मेरा था ख्याल
अपने होने पे खुद से, करता हूँ मैं सवाल
सूरज ने भी फिर मुझे, ऐसे ही ललचाया
जल जल के कोई भी, ना ये दिल बहला सका
दिल ये मासूम हैं पर इतना भी नहीं
चाँद सूरज सितारों से भी रहना नहीं
रोशन हैं तुझसे यह सब पर, यह तू हैं नहीं
इन सब से मैं खेला, मगर मैंने मन ये सनम नहीं
तेरी ही वफ़ा में, हम आग से खेलें
सेहरा भी पाया हमने ये दरिया चीर के
एक तेरी ही खुशी ही में, हम कहाँ गुज़र गये
रे कौन सी डगर हैं और कितने फासले
जहाँ पे दिल को ख़वाल बहलाते हैं
निगाहों में तू ही तो है ना
अनजाने सारे वहाँ, कब तक मैं सहूँ
जीने की खातिर दिल बदले तो मैं कुछ कहूँ
सुनने को राज़ी हो तो, मैं उनके साथ रहूँ
हर एक चमक के पीछे, ना ढौड़े तो मैं संग चलूँ
आईयारी मे देखो कैसे झमता जहाँ
मंजिल हैं कहीं पे, और वे चल विया कहाँ
वक्त नहीं पायेगा तू, फट जायेगी जमीन
कभी ना कभी वे समझेगा, तू मुझको हैं यकीन
सच्चाई से आँखे फिराना तेरी फितरत हैं
मैंने तो वही कहा जो, कहना मकसद हैं
दुनिया तो दुनिया हैं, दुनिया की कीमत नहीं
सूरत तेरी अच्छी है पर सीरत हैं नहीं
जीने को तो छुपाये भी जीते हैं मगर
इंसान हैं तू खुद अपनी ना, करता हैं कदर